नारी विमर्श >> ओ उब्बीरी... ओ उब्बीरी...मृणाल पाण्डे
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भारतीय स्त्री का प्रजनन और यौन जीवन
वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका मृणाल पाण्डे की यह पुस्तक सामान्यतः भारत की स्वास्थ्य प्रणाली और खास तौर पर भारतीय स्त्री के यौन जीवन व प्रजनन स्वास्थ्य पर दृष्टिपात करती है। इस पुस्तक मे दर्ज सच्चाइयाँ लेखिका सम्मुख तब उजागर हुईं जब वे भारतीय स्त्री के स्वास्थ्य के बारे में जानने के लिए अपनी यात्रा पर निकलीं। अपने सफर में जल्द ही उन्हें मालूम हो गया कि यह सिर्फ भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और प्रजनन स्वास्थ्य के इतिहास का दस्तावेजीकरण भर नहीं है, बल्कि एक व्यापक यथार्थ का सामना करना है। स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं और स्वास्थ्यकर्मियों से बातचीत करने के लिए आई महिलाओं से उनके अपने जीवन और शरीर के बारे में सुनकर उन्हें कुछ बड़ी वास्तविकताओं का बोध हुआ।
नतीजा है स्त्रियों के जीवन के विवरणों से रची हुई यह कृति, जो हमें बताती है कि स्त्रियाँ अपने वातावरण से कैसे प्रभावित होती हैं, औरत और मर्द की सेक्सुअलिटी को लेकर उनकी धारणाएँ क्या हैं, इसके अलावा गर्भधारण के रहस्य, जन्म देने के सुख, बाँझपन के भय, गैरकानूनी गर्भपात और किशोरियों की सूनी दुनिया - इन सबके ब्योरों से यह पुस्तक बुनी गई है। लेखिका ने पुस्तक में जनसंख्या नीति और जनकल्याण में राज्य की भूमिका जैसे मुद्दों पर भी विमर्श किया है। और इस सबके बीच वे उन स्वयंसेवी संगठनों में अपना गहन विश्वास भी व्यक्त करती हैं, जिनकी कोशिशों के चलते स्त्रियाँ अपने जावन की अँधेरी गलियों और खामोशियों से बाहर आ रही हैं।
नतीजा है स्त्रियों के जीवन के विवरणों से रची हुई यह कृति, जो हमें बताती है कि स्त्रियाँ अपने वातावरण से कैसे प्रभावित होती हैं, औरत और मर्द की सेक्सुअलिटी को लेकर उनकी धारणाएँ क्या हैं, इसके अलावा गर्भधारण के रहस्य, जन्म देने के सुख, बाँझपन के भय, गैरकानूनी गर्भपात और किशोरियों की सूनी दुनिया - इन सबके ब्योरों से यह पुस्तक बुनी गई है। लेखिका ने पुस्तक में जनसंख्या नीति और जनकल्याण में राज्य की भूमिका जैसे मुद्दों पर भी विमर्श किया है। और इस सबके बीच वे उन स्वयंसेवी संगठनों में अपना गहन विश्वास भी व्यक्त करती हैं, जिनकी कोशिशों के चलते स्त्रियाँ अपने जावन की अँधेरी गलियों और खामोशियों से बाहर आ रही हैं।
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